AI मंत्री Diella — क्या यह भविष्य का लोकतंत्र है या तकनीकी तानाशाही का संकेत?
- प्रदीप शुक्ला
- 14 सित॰
- 3 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 24 सित॰

अल्बानिया ने दुनिया को चौंका दिया है। प्रधानमंत्री एडि रामा ने अपने मंत्रिमंडल में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर आधारित वर्चुअल असिस्टेंट Diella को मंत्री का दर्जा देकर यह संदेश दिया है कि भ्रष्टाचार से जूझते प्रशासन को अब इंसानों नहीं, बल्कि एल्गोरिथ्म की पारदर्शिता से सुधारा जाएगा।
Diella का कार्यक्षेत्र अत्यंत संवेदनशील है—सरकारी टेंडर और ठेके। अब यह वर्चुअल मंत्री सीधे अनुबंधों की जाँच करेगी और निर्णय लेगी। प्रधानमंत्री का तर्क है कि जहाँ दशकों से रिश्वत, सिफ़ारिश और राजनीतिक दबाव हावी रहे हों, वहाँ इंसानी विवेक से अधिक भरोसा डेटा और मशीन पर है।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
अल्बानिया का यह प्रयोग निस्संदेह ऐतिहासिक है, पर यह वैश्विक प्रवृत्ति से कटा हुआ भी नहीं है।
• एस्टोनिया : बाल्टिक देश ने अपनी e-Estonia पहल के तहत 130 से अधिक सरकारी सेवाओं में AI का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। टैक्स फाइलिंग से लेकर न्यायालय में छोटे दावों तक, AI नागरिकों की सुविधा बढ़ा रहा है।
* संयुक्त अरब अमीरात (UAE) : 2017 में दुनिया का पहला “Minister of State for Artificial Intelligence” नियुक्त किया गया था। हालांकि वहाँ AI मंत्री एक मानव है, जिसका काम नीति-निर्माण और टेक्नोलॉजी प्रमोशन है, न कि प्रशासनिक निर्णय लेना।
• चीन : AI निगरानी का सबसे बड़ा प्रयोग यहाँ देखा जा सकता है। “सोशल क्रेडिट सिस्टम” नागरिकों के व्यवहार को स्कोर में बदल देता है, जो लोन, यात्रा और नौकरियों तक पर असर डालता है। पारदर्शिता की बजाय यह नागरिकों पर निगरानी और नियंत्रण का औजार बन गया है।
• भारत : यहाँ भी AI का उपयोग प्रशासन में बढ़ रहा है—रेलवे टिकटिंग, कराधान और न्यायालयों में केस लिस्टिंग तक में। हाल ही में नीति आयोग ने “AI for All” विज़न प्रस्तुत किया। मगर भारत जैसा विशाल लोकतंत्र अब भी मानता है कि अंतिम निर्णय इंसानों का होना चाहिए।
• अमेरिका और यूरोप : AI का उपयोग प्रशासनिक सहायक और डेटा विश्लेषण में है, लेकिन निर्णायक सत्ता देने से अब तक परहेज़ किया गया है। यूरोपीय संघ तो इसके उलट AI Act लाकर सख़्त नियंत्रण की ओर बढ़ा है।
इन उदाहरणों से साफ है कि दुनिया में कहीं भी सत्ता का इतना महत्वपूर्ण हिस्सा पूरी तरह AI के हवाले नहीं किया गया—सिवाय अल्बानिया के।
पारदर्शिता बनाम जवाबदेही
Diella की सबसे बड़ी ताक़त यह बताई जा रही है कि वह पक्षपात नहीं करेगी। लेकिन लोकतंत्र का प्रश्न केवल इतना नहीं है कि “कौन निर्णय ले रहा है”, बल्कि यह भी है कि “निर्णय की जवाबदेही किसकी होगी?”
• यदि Diella किसी टेंडर को खारिज कर दे और ठेकेदार अदालत में चुनौती दे तो जवाब कौन देगा—AI का प्रोग्रामर, सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर या प्रधानमंत्री?
• यदि सिस्टम हैक हो गया तो क्या प्रशासनिक निर्णय कानूनी वैधता खो देंगे?
• और सबसे अहम—क्या नागरिकों को यह समझाया जाएगा कि Diella किस आधार पर फ़ैसले लेती है, या सब कुछ “ब्लैक बॉक्स” बना रहेगा?
जोखिम और आशंकाएँ
इतिहास बताता है कि भ्रष्टाचार केवल इंसानी दुर्बलता नहीं, बल्कि प्रणालियों की कमज़ोरी भी है। यदि Diella का एल्गोरिथ्म पारदर्शी न हुआ, तो भ्रष्टाचार का नया रूप सामने आ सकता है—जहाँ रिश्वत इंसान को नहीं, बल्कि सिस्टम को बनाने वालों को दी जाएगी। यह “AI कैप्चर” लोकतंत्र के लिए उतना ही ख़तरनाक होगा जितना अब तक “राजनीतिक कैप्चर” रहा है।
भविष्य की राह
अगर अल्बानिया का यह प्रयोग सफल होता है तो अन्य देश भी प्रेरित होंगे। भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में, जहाँ टेंडर घोटाले आम हैं—चाहे 2G स्पेक्ट्रम हो, कोयला खदानें हों या निर्माण कार्य—AI मंत्री का विचार आकर्षक लगेगा। पर भारत को यह भी सोचना होगा कि क्या इतने जटिल समाज में मशीन की कठोर निष्पक्षता हमेशा न्याय का रूप लेगी, या कभी-कभी मानवीय विवेक की कमी से अन्याय भी जन्म लेगा?
अल्बानिया ने साहसिक प्रयोग कर दिखाया है। यह या तो दुनिया को नया प्रशासनिक मॉडल देगा, या यह चेतावनी बन जाएगा कि सत्ता मशीनों के हाथ में सौंपना उतना आसान नहीं जितना लगता है।
Diella को अल्बानियाई भाषा में “सूरज” कहा गया है। लेकिन असली परीक्षा यह है कि क्या यह सूरज जनता के लिए रोशनी बनेगा, या सत्ता के गलियारों में कृत्रिम चमक भरकर लोकतंत्र की परछाइयों को और गहरा कर देगा।














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