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न्यायपालिका में पारदर्शिता और विविधता की कमी को दूर करने के लिए SCBA का नया प्रस्ताव

न्यायपालिका में पारदर्शिता और विविधता की कमी को दूर करने के लिए SCBA का नया प्रस्ताव
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए मुख्य न्यायाधीश (CJI) और क़ानून मंत्री को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में एसोसिएशन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अब वक्त आ गया है कि देश में जजों की नियुक्ति की व्यवस्था में व्यापक सुधार किया जाए। इन सुधारों का लक्ष्य न्यायपालिका में वृहद स्तर पर पारदर्शिता और विविधता लाना है।

SCBA के अध्यक्ष ने कोलेजियम सिस्टम की कमियों पर ज़ोरदार टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि इस सिस्टम में पारदर्शिता की घोर कमी है और महिलाओं का प्रतिनिधित्व बेहद सीमित है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों में महिला जजों का प्रतिशत केवल 11% है। सवाल यह है कि अगर सर्वोच्च न्यायालय की नियुक्तियों में ही महिलाओं और विविध समाज का संतुलित प्रतिनिधित्व नहीं होगा, तो न्यायपालिका से समानता की उम्मीद कैसे की जा सकती है?


कोलेजियम सिस्टम की समस्याएँ


असल में, कोलेजियम सिस्टम पर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं। जज अपने ही उत्तराधिकारी चुनते हैं, और निर्णय बंद दरवाजों में होते हैं। इस प्रणाली में न कोई सार्वजनिक मानक, न संसद की महत्वपूर्ण भूमिका, और न ही जनता के प्रति जवाबदेही है। नतीजा यह है कि यह सिस्टम अक्सर नेपोटिज़्म, गुटबाज़ी, और “अपने-अपने लोगों” को तरजीह देने के आरोपों से घिरा रहता है।


यही कारण है कि योग्य और प्रतिभाशाली वकील अक्सर पीछे छूट जाते हैं जबकि "नेटवर्क वाले" वकील आगे बढ़ जाते हैं। उदाहरण के लिए, 2021 में, वकीलो में से केवल 5% को नियुक्तियों की प्रक्रिया में प्राथमिकता मिली। यह दर्शाता है कि किस प्रकार अयोग्यता के बावजूद कुछ ही लोग शीर्ष पदों तक पहुँचते हैं।


SCBA की चिट्ठी का महत्व


SCBA की यह चिट्ठी केवल एक औपचारिक पत्र नहीं है, बल्कि न्यायपालिका के भीतर से उठी चेतावनी है कि बदलाव अब अनिवार्य है। अगर कोलेजियम सिस्टम को समय रहते नहीं बदला गया, तो जनता के बीच न्यायपालिका की विश्वसनीयता लगातार घटती जाएगी। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 70% नागरिकों का मानना है कि न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता है।


इस पत्र के माध्यम से SCBA ने यह स्पष्ट किया है कि न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता है। यह सुधार न केवल जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए आवश्यक है, बल्कि इससे न्यायपालिका की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी।


लोकतांत्रिक भारत में कोलेजियम सिस्टम का बोझ


कोलेजियम सिस्टम अब लोकतांत्रिक भारत के लिए एक बोझ बन चुका है। इसे या तो पूरी तरह से बदलना होगा या इसमें ऐसे सुधार करने होंगे, जिससे पारदर्शिता, जवाबदेही और विविधता सुनिश्चित हो सके। SCBA का यह कदम एक सकारात्मक संकेत है। यह दर्शाता है कि न्यायपालिका के भीतर से भी सुधार की आवाज उठ रही है।


सुधार की दिशा में कदम


SCBA की चिट्ठी में यह भी उल्लेख किया गया है कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में महिलाओं और विभिन्न सामाजिक समूहों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इस प्रणाली में सुधार करके हम न केवल न्यायपालिका की कार्यप्रणाली को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि यह समाज में समानता और न्याय के सिद्धांतों को भी मजबूत करेगा।


बदलाव के लिए, सरकार को सार्वजनिक सुनवाई, विस्तृत द्वार खुले रखकर और विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल कर एक नया मॉडल विकसित करने की आवश्यकता है। इससे न्यायपालिका की कार्यप्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है।


सारांश


SCBA का यह नया प्रस्ताव न्यायपालिका में पारदर्शिता और विविधता की कमी को दूर करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह समय की मांग है कि हम न्यायपालिका की नियुक्ति की प्रक्रिया में सुधार करें ताकि यह सभी वर्गों का सही प्रतिनिधित्व कर सके।


यदि हम न्यायपालिका में सुधार नहीं करते हैं, तो यह न केवल न्यायपालिका की विश्वसनीयता को प्रभावित करेगा, बल्कि यह समाज में समानता और न्याय के सिद्धांतों को भी कमजोर करेगा। SCBA की यह चिट्ठी एक महत्वपूर्ण संकेत है कि अब बदलाव की आवश्यकता है। हमें सभी मिलकर न्यायपालिका में सुधार की दिशा में तेजी से कदम उठाने की जरूरत है।



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