अटल सेतु का 18 महीने में जर्जर होना भ्रष्टाचार दर्शाता है ! Infrastructure की गुणवत्ता पर सवाल !
- Adam Human Rights Wala
- Sep 20
- 3 min read
Updated: 11 hours ago
अटल सेतु का निर्माण ₹17,840 करोड़ की लागत से किया गया था | अटल सेतु ने महज 18 महीनों में जर्जरता का सामना किया है। यह घटना न केवल इस विशेष परियोजना की गुणवत्ता पर सवाल उठाती है, बल्कि यह हमारे देश में बुनियादी ढांचे के विकास की चुनौतियों व भ्रष्टाचार को भी उजागर करती है। इस पोस्ट में, हम इस गंभीर समस्या के पीछे के कारणों को समझने का प्रयास करेंगे और यह देखेंगे कि यह घटना क्या दर्शाती है।
अटल सेतु का महत्व
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2016 में अटल सेतु (Mumbai Trans Harbour Link (MTHL) की नींव रखी थी और इसका उद्घाटन जनवरी 2024 में किया था, अटल सेतु को एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के रूप में देखा गया था। यह सेतु न केवल यातायात को सुगम बनाने के उद्देश्य से बनाया गया था, बल्कि इसने क्षेत्र के आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देने की अपेक्षा की थी।
अटल सेतु की जर्जरता का एक कारण भ्रष्टाचार भी हो सकता है !
हालांकि, जर्जरता के इस मामले ने यह स्पष्ट किया है कि परियोजना की योजना और निर्माण में महत्वपूर्ण कमियां थीं। Larsen & Toubro (L&T), Tata Projects Limited, and Daewoo E&C व Strabag Infrastructure जैसी दिग्गज कंपनियों ने अटल सेतु (Mumbai Trans Harbour Link (MTHL) परियोजना ने 7 वर्षों से अधिक समय तक कार्य किया, जर्जरता से स्पष्ट है कि इसका निर्माण उच्चतम गुणवत्ता मानकों को नज़रअंदाज़ कर किया गया है ।
निर्माण गुणवत्ता की समस्या
यह स्थिति निर्माण में गुणवत्ता की कमी को उजागर करती है। इतना पैसा खर्च करने के बाद भी, क्या यह संभव है कि गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया गया?
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 40% निर्माण परियोजनाएं गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करती हैं। इसकी मुख्य वजह सही सामग्री का चयन न करना और निर्माण प्रक्रिया में लापरवाही व भ्रष्टाचार होती है। अटल सेतु का मामला ऐसा ही एक उदाहरण है, जहां सही प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया।
उदाहरण के लिए, अमेरिका में वैश्विक मानकों को ध्यान में रखते हुए भवन निर्माण पर एक अध्ययन में यह पाया गया कि 25% परियोजनाएं संचालन के पहले वर्ष में ही समस्याओं का सामना करती हैं। हमें अपने यहाँ ऐसे मानकों की आवश्यकता है।

सरकारी नीतियों का प्रभाव
सरकारी नीतियाँ और प्रक्रियाएँ इस स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यदि परियोजनाओं के लिए मानक, समय पर और सख्ती से लागू नहीं होते, तो समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
स्वीडन में, निर्माण परियोजनाओं की निगरानी राष्ट्रीय स्तर पर की जाती है, जिससे गुणवत्ता की सुनिश्चितता में सुधार होता है। भारत को भी ऐसी तेज़ और प्रभावी प्रणाली की आवश्यकता है।
इसलिए, सरकार को चाहिए कि वह निर्माण परियोजनाओं के लिए सख्त मानक और प्रक्रियाएँ स्थापित करे। ऐसा न होना, केवल करोड़ों रुपये बर्बाद करने का कारण बनता है।
जनता की प्रतिक्रिया
इस घटना के बाद, जनता की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है। लोग यह जानना चाहते हैं कि उनके करों का सही उपयोग हो रहा है या नहीं।
भारत में एक सर्वेक्षण के अनुसार, 70% लोग इसे एक गंभीर मुद्दा मानते हैं जब बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं इतनी जल्दी जर्जर हो जाती हैं। जब एक महत्वपूर्ण परियोजना इतनी जल्दी खराब हो जाती है, तो यह जनता के विश्वास को कमजोर करती है।
भविष्य की दिशा
इस स्थिति से बेहतर भविष्य के लिए सीखने की आवश्यकता है। क्या हमें अपने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए नए मानक और प्रक्रिया स्थापित करने की जरूरत है?
हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों। परियोजनाओं में गुणवत्ता की निगरानी और मूल्यांकन को प्राथमिकता देनी होगी।
समापन विचार
अटल सेतु का इतनी जल्दी जर्जर होना एक गंभीर चिंता का विषय है। यह केवल निर्माण गुणवत्ता की समस्या को स्पष्ट नहीं करता, बल्कि यह भी दर्शाता है कि हमें उच्च मानकों व ईमानदार कंपनी, ठेकेदारों व नेताओं की आवश्यकता है।
जनता को सरकार से सवाल करना होगा ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों। हमें अधिकतम मानकों के साथ अपने बुनियादी ढांचे को सुनिश्चित करना होगा, ताकि हम सबको सुरक्षित और सुगम यात्रा का अनुभव हो सके।
यह घटना हमें यह सीख देती है कि बुनियादी ढांचे का विकास केवल धन खर्च करने से नहीं होता; इसके लिए सही योजना, गुणवत्ता मानक और निरंतर निगरानी व ईमानदारी की आवश्यकता है। अटल सेतु का जर्जर होना हमें यह महत्वपूर्ण सबक सिखाता है कि गुणवत्ता को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
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