उत्तराखंड छात्र आंदोलन : सच और सेंसरशिप
- प्रदीप शुक्ला
- 27 सित॰
- 2 मिनट पठन
अपडेट करने की तारीख: 10 अक्टू॰

पेपर लीक का सिलसिला : भाजपा सरकार की विफलता !
2021 → वन दरोगा और पटवारी भर्ती पेपर लीक।
2021 दिसंबर → ग्रेजुएट लेवल परीक्षा पेपर लीक, 1.5 लाख विद्यार्थी प्रभावित।
2022 → जूनियर इंजीनियर परीक्षा पेपर लीक।
2025 → ताज़ा ग्रेजुएट लेवल पेपर लीक में भाजपा से जुड़े लोग पकड़े गए।
क्या यह महज़ लापरवाही है या संगठित भ्रष्टाचार? मीडिया की चुप्पी : सत्ता का दबाव
स्थानीय अख़बारों को सरकार के विज्ञापन रोकने की धमकी दी गई।
संपादक खुद सरकार की सेंसरशिप के लिए तैयार बैठे थे।
छात्रों की खबरें गायब, लेकिन भ्रष्ट नेताओं को पन्नों पर जगह।
क्या यह पत्रकारिता है या सरकारी नोटिस बोर्ड? Gen Z की भूमिका : धर्म नहीं, रोज़गार चाहिए
उत्तराखंड के युवा “पेपर चोर-गद्दी छोड़” के नारे लगा रहे हैं।
सरकार इसे “नकल जिहाद” कहकर हिंदू-मुस्लिम बनाने की कोशिश कर रही है।
लेकिन Gen Z पूछ रही है:
नौकरी कहाँ है?
हर बार परीक्षा क्यों रद्द होती है?
नेताओं के बच्चे सुरक्षित और हमारे सपने बर्बाद क्यों?
सोशल मीडिया बनाम सेंसरशिप
अख़बार और टीवी चैनल चुप, लेकिन सोशल मीडिया पर आंदोलन वायरल।
लोकगायक और गाँव-गाँव के युवा आंदोलन का सांस्कृतिक चेहरा बन रहे हैं।
केदारनाथ आपदा की तरह—एक बार फिर जनता ही पत्रकार।
सवाल जो सरकार से पूछने ही होंगे
1. भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक की ज़िम्मेदारी किसकी?
2. बार-बार भाजपा से जुड़े लोग क्यों पकड़े जा रहे हैं?
3. क्या विज्ञापन के डर से मीडिया लोकतंत्र बेच देगा?
4. बेरोज़गार युवाओं को “नकल जिहादी” कहना क्या अपमान नहीं?
5. कब तक भाजपा सरकार युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करेगी?
उत्तराखंड के छात्र आंदोलन ने साफ़ कर दिया है कि यह लड़ाई हिंदू-मुस्लिम की नहीं, भविष्य की है। Gen Z जानती है कि नोटबंदी क्यों हुई, पेपर क्यों लीक हुए और मीडिया क्यों चुप है।
सरकार के पास दो ही रास्ते हैं —
या तो भ्रष्ट सिस्टम को सुधारो,
या फिर आने वाले चुनाव में जनता का गुस्सा झेलो।














टिप्पणियां