इंदौर में जिहादी मानसिकता के खिलाफ व्यापारियों का संघर्ष और उसके समाज पर प्रभाव
- Nationalism News Desk
- 29 सित॰
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समुदाय में बदलाव की प्रेरणा
इंदौर, मध्यप्रदेश का एक प्रमुख शहर, हाल के दिनों में एक संघर्ष का केंद्र बन गया है। यहाँ के व्यापारियों ने जिहादी मानसिकता के खिलाफ एक अभियान शुरू किया है, जिसमें उन्होंने सीतलामाता बाजार में मुसलमानों के बहिष्कार के पोस्टर लगाए हैं। यह कदम केवल व्यापारियों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे समाज में व्यापक बहस का कारण बन चुका है। क्या यह कदम सही है? इससे समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? हम इस ब्लॉग पोस्ट में इन पहलुओं पर चर्चा करेंगे।
जिहादी मानसिकता का प्रवेश निषेध
सीतलामाता बाजार व्यापारी एसोसिएशन ने अनोखा कदम उठाया है। उन्होंने बाजार में जिहादी मानसिकता के खिलाफ पोस्टर लगाए हैं, जहाँ साफ लिखा है कि मुसलमानों का बहिष्कार किया जाए। यह केवल एक संदेश नहीं है, बल्कि यह आगे बढ़ते समय की चेतना है।
व्यापारियों का मानना है कि ऐसा कदम उठाना जरूरी है। 2018 में, शहर के लगभग 30% व्यापारियों ने यह बताया था कि उनके व्यवसाय पर जिहादी मानसिकता का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। ऐसे में, व्यापारियों को लगा कि यदि वे चुप रहेंगे, तो यह मानसिकता उनके व्यवसाय और समाज दोनों को नुकसान पहुंचाएगी।
इस्लामोफोबिया का बढ़ता प्रभाव
इस्लामोफोबिया, जो कि मुस्लिम समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह को दर्शाता है, इंदौर में गंभीर रूप से बढ़ रहा है। व्यापारियों के इस कदम ने इस्लामोफोबिया को और बढ़ावा दिया है। जब एक समुदाय को बहिष्कृत किया जाता है, तो यह न केवल उनके लिए हानिकारक होता है, बल्कि पूरे समाज के लिए भी।
शोध दर्शाते हैं कि 2022 में भारत में इस्लामोफोबिया से संबंधित घटनाओं में 30% की वृद्धि हुई थी। ऐसे माहौल में व्यापारियों को चिंता है कि यदि कुछ नहीं किया गया, तो यह तनाव और विभाजन की स्थिति केवल बढ़ेगी।
व्यापारियों का संघर्ष
व्यापारियों का यह संघर्ष आर्थिक, सामाजिक और नैतिक है। 60% व्यापारियों ने यह माना कि उनका व्यवसाय सुरक्षित नहीं है जब तक कि वे इस मानसिकता का विरोध नहीं करते। वे सिर्फ अपने व्यवसाय को नहीं, बल्कि समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश भी कर रहे हैं।
व्यापारियों के अनुसार, जब वे एकजुट होकर खड़े होंगे, तभी अपनी आवाज को प्रभावी ढंग से उठा पाएंगे। उदाहरण के लिए, जब व्यापारियों ने 2022 में एक विरोध प्रदर्शन किया था, तो लगभग 500 व्यापारियों ने हिस्सा लिया, जो इसे एक मजबूत संयुक्त प्रयास बनाता है।
चुनौतियों का सामना
इस संघर्ष का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है। जहाँ कुछ लोग इस कदम का समर्थन कर रहे हैं, वहीं कई इसे भेदभाव समझते हैं। कई नागरिक सोच रहे हैं कि क्या यह कदम सही है, या यह केवल एक पूर्वाग्रह को बढ़ावा दे रहा है?
समाज में यह स्थिति गंभीर बहस का कारण बन सकती है। आंकड़े बताते हैं कि इंदौर में पिछले छह महीने के दौरान मुस्लिम व्यापारियों की दुकानदारी में 20% की गिरावट आई है। यह सच में चिंताजनक है और समाज के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।
शासन - प्रशासन मौन क्यों ?
मिनी मुंबई कहे जाने वाले इंदौर में एक समुदाय को खुलेआम जिहादी मानसिकता वाला बताया जा रहा है और उनके बहिष्कार के पोस्टर लगाए जा रहे हैं। इंदौर सरकार और प्रशासन भी चुप है। शहर में शांति और भाईचारा बनाए रखने के लिए दोनों समुदायों के बीच नफरत फैलाने वालों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन शायद शासन - प्रशासन चैन की नींद सोया हुआ है ।
क्या पूरा मुस्लिम समाज जिहादी मानसिकता रखता है ?
इंदौर में जिहादी मानसिकता के खिलाफ व्यापारियों का संघर्ष हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि समाज में असहिष्णुता के खिलाफ उठने की जरूरत है। भेदभाव और पूर्वाग्रह से समाज में केवल विभाजन होगा।
इसलिए, हम सभी को एकजुट होकर इस मानसिकता का विरोध करना होगा। हमें एक ऐसा समाज चाहिए जहाँ भेदभाव और असहिष्णुता का स्थान न हो।
इस संघर्ष का संदेश न केवल इंदौर तक सीमित है, बल्कि यह पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है। विचार-विमर्श जारी रहना चाहिए ताकि हम एक बेहतर, समावेशी समाज की दिशा में आगे बढ़ सकें।














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